दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पूसा-2090 नामक कम अवधि में अधिक उपज देने वाली धान की किस्म सफलतापूर्वक विकसित की है।
- विकास का उद्देश्य: नई किस्म का उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में धान की पराली जलाने और वायु प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना है।
- पराली जलाने का मुद्दा: पारंपरिक धान की फसल, जिसे जून में रोपा जाता है, आमतौर पर अक्टूबर के अंत तक कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों के पास अगली गेहूं की फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए न्यूनतम समय बचता है। समय की इस कमी के कारण पराली जलाना एक आम बात हो गई है।
- मौजूदा किस्म से तुलना: पूसा-2090 मौजूदा पूसा-44 किस्म का उन्नत संस्करण है। नई किस्म 120 से 125 दिनों में पक जाती है, जिससे किसानों को पूसा-44 की तुलना में लगभग 30 दिन अधिक मिलते हैं, जिसे पकने में 155 से 160 दिन लगते हैं।
- पूसा-2090 के लाभ: पूसा-2090 की कम परिपक्वता अवधि किसानों को अगली फसल के लिए अपने खेतों को तैयार करने के लिए अधिक समय देती है, जिससे पराली जलाने पर निर्भरता कम हो जाती है।
प्रश्न: पूसा-2090 की परिपक्वता अवधि मौजूदा पूसा-44 धान किस्म की तुलना में कैसी है?
a) पूसा-2090 को परिपक्व होने में अधिक समय लगता है
b) पूसा-2090 और पूसा-44 की परिपक्वता अवधि समान है
c) पूसा-2090, पूसा-44 की तुलना में तेजी से परिपक्व होता है
d) इनमे से कोई भी नहीं
उत्तर : c) पूसा-2090, पूसा-44 की तुलना में तेजी से परिपक्व होता है
प्रश्न: दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में किसान धान की पराली क्यों जलाते हैं?
a) परंपरा और सांस्कृतिक प्रथाएँ
b) जागरूकता की कमी
c) धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच कम समय
d) मृदा संवर्धन
उत्तर : c) धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच कम समय